बॉलीवुड में हॉरर फिल्में बनाने की शुरुआत रामसे ब्रदर्स ने की थी। रील तू रियल के नए एपिसोड में हॉरर फिल्म्स की मेकिंग, किस्से और आज के दौर में बदलावों पर बात होगी।
कमाई के मामले में देखें तो इस साल हॉरर फिल्मों का बोलबाला रहा। शैतान, मुंज्या और अब स्त्री-2 ने कमाई के झंडे गाड़ दिए। यह एक ऐसा जॉनर है, जिसे दर्शक हमेशा पसंद करते हैं। हिंदी सिनेमा में भूतिया फिल्मों का ट्रेंड शुरू होने का श्रेय किसी को जाता है तो वे हैं रामसे ब्रदर्स। वीराना, दो गज जमीन के नीचे, पुराना मंदिर और पुरानी हवेली जैसी फिल्में इसके साक्षी हैं।
आज रील में आप रियल में डरावनी फिल्मों की शूटिंग स्टूडियो, फिल्मों में आए बदलाव और कुछ अनकहे किस्सों को शामिल करेंगे। इसके लिए हमने रामसे परिवार की अगली पीढ़ी को आगे ले जा रहे दीपक रामसे, डायरेक्टर सोहम शाह, एक्ट्रेस फ्लोरा पॉली और एक अनुभवी मैनेजर संजय से बात की।
डिक रामसे ने बताया कि उनके अंकल किरण रामसे अक्सर कब्रिस्तान में उपभोक्ता ध्वनि रिकॉर्ड करते थे। फिर उन साउंड्स को अपनी फिल्मों में इस्तेमाल करते थे।
पहले रामसे ब्रदर्स की फिल्में और शूट से जुड़े कुछ तथ्य जानिए..
- रामसे ब्रदर्स की फिल्में दिन में नहीं, रात में रिलीज होती थीं।
- ज्यादातर शूटिंग रियल किस्से जैसे क्रैबस्टीन, पुराने फर्नीचर और हवेलियों में शूट हुए थे।
- लगभग सारी फिल्में 30-35 लाख के बजट में शानदार थीं और एक से बढ़कर एक करोड़ के आस-पास कर प्लॉट थीं।
- रामसे ब्रदर्स की हॉरर फिल्मों की शूटिंग का अंदाज बहुत अनोखा था। वे रात 9 बजे कब्रिस्तान में घुसते थे और सुबह 4 बजे घुसते थे। उन्होंने इसे ‘स्पेशल ग्रेवयार्ड शूट’ का नाम दिया था। ज्यादातर शॉट इसी टाइम स्क्रीन के बीच थे।
- रामसे ब्रदर्स ने ‘जी हॉरर शो’ नाम का एक टीवी हॉरर शो भी शुरू किया था। ये शो इतना डरावना था कि चैनल को रामसे ब्रदर्स के नाम से एक पत्र लिखा गया था। लेटर में लिखा था कि शो को बच्चे भी देख रहे हैं, इसलिए हॉरर सीन्स को थोड़ा कम करना चाहिए।
- 70, 80 और 90 के दशक में डरावनी फिल्मों को बीग्रेड श्रेणी में माना जाता था। ए-लिस्टर्स एक्टर्स इन फिल्मों में नहीं करते थे काम। इसका कारण यह था कि इन फिल्मों में ग्लैमर का भी अच्छा-खासा डोज होता था। इसके अलावा इन फिल्मों में ज्यादातर ए-सर्टिफिकेट ही थे, जिनकी वजह से बड़े एक्टर्स पहले ही कन्नी काट लेते थे। छोटे एक्टर्स के बावजूद रामसे ब्रदर्स की फिल्में खूब कमाई करती हैं।
एक सीन की वजह से डरावनी फिल्में बनाने की सोच आई
दीपक रामसे ने बताया कि उनके पिता और अंकल ने भूतिया फिल्में बनाने के बारे में क्या सोचा था। असली रामसे ब्रदर्स की एक फिल्म रिलीज हुई थी जिसका नाम था- ‘एक नन्ही मुन्नी थी गर्ल’। इस फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर भूतों वाला मुखौटा लेकर आते हैं, जिसमें देखने वाली नायिका मुमताज डर भी शामिल हैं।
फिल्म तो फ्लॉप हो गई, लेकिन ये सीन हिट हो गया। इस सीन पर तालियां बजती देख रामसे ब्रदर्स ने एक फुल फ्लेज्ड हॉरर फिल्म बनाने का फैसला लिया। उन्होंने 3.5 लाख के बजट में फिल्म ‘दो गज जमीन के नीचे’ बनाई जो सुपरहिट रही।
गोली मार दी गई, तो वहीं से मौत हो गई
बजट कम था, इसलिए फिल्म की शूटिंग एक असली कब्रिस्तान में की गई। रात में शूट हो रहा था. फिल्म के सीक्वेंस के मुताबिक, शूट के लिए वहां एक खोदना था। जब गया तो वहाँ से एक मृत निकल आया। बहुत बड़ा मसला हो गया। शूटिंग भी रोकनी पोस्ट। हालांकि बाद में किसी तरह से फिल्मांकन कंप्लीट हुआ।
दीपक, रामसे ब्रदर्स में सबसे बड़ी तुलसी रामसे के बेटे हैं। ये अपने पिता के साथ भी कई फिल्मों का हिस्सा रहे हैं। अन्य खुद भी फिल्में निर्देशित की हैं।
जब ताबूत के अंदर फंस गया कलाकार, थी अस्मिता वाली बात
दीपक रामसे ने बताया कि एक बार उनके पिता और चाचा फिल्म ओल्ड टेम्पल की शूटिंग कर रहे थे। उस फिल्म में शैतान बने साथी को एक टैबू में बंद करना था। वो ताबूत जर्मनी से उबर गया था। वो टैबूट इतना मजबूत था कि एक बार गलती से लॉक हो जाए तो जल्दी नहीं खुलता था।
शैतान निर्माता को उसके अंदर लिटाया गया। डायरेक्टरेट ने ध्यान नहीं दिया और टैबूट लॉक हो गया। करीब 7-8 मिनट तक तो वो खुल ही नहीं पाया। उनके अंदर लेटे की दुनिया करीब-करीब इंकलाब वाली थी। काफी संकट के बाद ताबूत का खुलासा हुआ। कलाकार का काम अंदर से निकला। वो कलाकार पूरी तरह से शैतान के गेटअप में था। दीपक रामसे ने बताया कि उन्होंने पहली बार किसी ‘भूत’ का अनुभव किया था।
एक्टर्स को भूत वाले मास्क कपड़े मिलते थे, ज्यादातर की शूटिंग रात में होती थी
जब वीएफएक्स नहीं था, तब साउंड और विजुअल इफेक्ट्स से ही डरावने सीन क्रिएट किए जाते थे। फ़्रांसीसी की जहाँ तक कोशिश की गई थी उस रात ही शूट किया जाए ताकि सीन को एक स्टॉक लुक दिया जा सके।
इसके अलावा एक्टर्स को भूत वाले मास्क और कपड़े मिलते थे। हालांकि मास्क में एक्टर्स के रियल एक्सप्रेशन छिप गए थे, बाद में मास्क की जगह प्रोस्थेटिक मेकअप ले लिया गया। 8-9 घंटे तक लगातार ऑपरेशन हुआ। इस दौरान एक्टर्स को बिजनेस या स्ट्रॉ से कुछ खाने-पीने को दिया गया था। आज की डेट में एक बार मेकअप हो जाए तो बाकी सारा काम वीएफएक्स से हो जाए।
श्याम रामसे के कार्टून में एक सोलो मास्क देखा जा सकता है। उनकी फिल्मों के साथी ऐसे ही मास्क यूज़ करते थे।
5 साल बाद बनी इसी घटना पर बनी फिल्म
6 मई 1988 को रिलीज हुई फिल्म वीराना को भुलाया नहीं जा सका। इस फिल्म को बनाने के पीछे भी एक कहानी है।
प्रिय श्याम रामसे एक दिन महाबलेश्वर से अपनी किसी फिल्म की शूटिंग करके वापस आ रहे थे। रास्ते में एक महिला ने अपनी लिफ्ट ली। श्याम रामसे ने उस महिला को टक्कर तो दे दी, लेकिन उसे देखने में काफी अजीब लग रही थी। उसका शरीर लैंग्वेज नाम के लोगों की तरह नहीं था। श्याम रामसे काफी डर गए। उन्होंने महिला को गाड़ी से उतारा और वहां से भागते बने।
श्याम रामसे की भांजी अलीशा प्रीति कृपलानी ने अपनी किताब ‘घोस्ट इन ऑवर बैकयार्ड’ में इस घटना के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने यहां तक लिखा है कि जिस महिला को उनके मामा श्याम रामसे ने उठाया था, उसके दोनों पैर मुड़े हुए थे, जैसा कि चुड़ैलों के बारे में माना जाता है।
श्याम रामसे के साथ यह घटना 1983 में घटी थी, इसके पांच साल बाद उन्होंने फिल्म वीराना बनाई। फिल्म वीराना में भी दिखाया गया है कि एक खूबसूरत महिला के भेष में विच राच लोगों से मांगती है और फिर उन्हें मार देती है। फिल्म में उस चुड़ैल का किरदार एक्ट्रेस जैस्मीन ने लिया था।
फिल्म वीराना का एक सीन है, जिसमें जैस्मीन राह एक शख्स से लिफ्ट मांगती है, फिर उसी रास्ते पर अपनी तलाश कर सकती है।
टेप रिकॉर्डर में बंद आदमी की सांस लेने की आवाज
रामसे ब्रदर्स में से एक किरण रामसे साउंड का सारा काम देखते थे। वे कब्रिस्तान में जाकर फिर वहां हवा की सनसनाहट, दुकान की आवाज और चिड़ियों की चहाचहाहट रिकॉर्ड करते थे। फिर वे फिल्मों में स्कोर साउंड का विशेष रूप से उपयोग करते थे।
एक बार वे कब्रिस्तान से ध्वनि रिकार्ड करके घर आये। उन्होंने टेप रिकॉर्डर ऑन पर घर रखा। उन्होंने कुछ ऐसा सुना जिससे उनके होश उड़ गए। असल में किसी आदमी की सांस लेने की आवाजें आ रही थीं, जबकि वहां उनके अलावा कोई मौजूद नहीं था।
थिएटर में साथ बैठे सैकड़ों लोगों को डराना सबसे मुश्किल काम
काल एंड लुक जैसी फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर सोहम शाह का कहना है कि हॉरर फिल्मों को खरीदना सबसे मुश्किल काम है। उन्होंने कहा, ‘एक पिक्चर हॉल में 300 लोग फिल्म देखते हैं। जाहिर सी बात है कि उन्हें डराना कितना मुश्किल काम होगा। कोई अकेला व्यक्ति रह रहा है तो समझ में भी आता है। बड़े दुख की बात है कि हॉरर फिल्मों की हमेशा से स्टॉक सूची मिलती रहती है। हालाँकि पिछले कुछ प्राचीन काल से यह धारणा बदली हुई है।’
हिंदी सिनेमा में पिछले दशक से ही हॉरर कॉमेडी फिल्मों का चलन शुरू हो गया है। सोहम शाह ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘लोग देखते हैं कि हम 200-300 रुपये खर्च करके सिर्फ हॉरर फिल्म क्यों देखते हैं। उनके साथ में कुछ मनोरंजन भी होना चाहिए। फिल्म ऑर्केस्ट्रा ने इस चीज को भांपने में समय लगा दिया। इसके बाद से ही हॉरर कॉमेडी फिल्मों का ट्रेंड शुरू हो गया। ‘भूलभुलैया, भूतनाथ, गो गोगोन, स्त्री और मुंज्या जैसी फिल्में इसके उदाहरण हैं।’
हॉरर फिल्मों की शूटिंग के लिए घने जंगल की पहली पसंद
हम मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क भी गए। वहां कई डरावनी फिल्में और शोज की शूटिंग हुई है। वहां मौजूद पहले मैनेजर संजय ने बताया कि यहां के जंगल देखने में ही भूतिया शामिल हैं, इसलिए इंक्वायरी की पसंद बन जाती है।
इंजीनियर मैनेजर ने कहा, ‘शूटिंग के समय कई बार झुकाव की भावना होती है। कई क्रू मेंबर्स को आभास होता है कि उन्हें अपने आस-पास को किसी न किसी तरह का एहसास होता है। कई कैमरामैन भी इसकी शिकायत कर चुके हैं।’
वैभव कैफ और विजय सेतुपति की फिल्म मैरी क्रिसमस की शूटिंग भी हुई है। इसके अलावा जी हॉरर शो और अहाट जैसे टेलीविज़न शोज़ की शूटिंग भी फ्रेंडली में हुई थी।
ऐसे जंगल खोजते हैं, जो देखने में ही भूतिया लगते हैं। इसके लिए विशेषज्ञ प्रबंधक की भूमिका में काफी वृद्धि हुई है।
यहां शूट के वक्त काफी परेशानियां भी आती हैं। कीड़े-मकौड़े और जंगली जानवरों का यहाँ बसेरा है। इंजीनियर की सुरक्षा को देखते हुए सेट पर हर वक्त सपेरे और दोस्त को करीब से देखने वाले लोग मौजूद रहते हैं।
इन जंगल में हॉरर फिल्मों की शूटिंग कुछ ऐसी होती है।
महिला में घोस्ट बनीं एक्ट्रेस बोलीं- ऐसा लगा मेरे अंदर नॉमिनेशन नहीं है
फिल्म में घोस्ट बनीं फ्लोरा सैटनी ने कहा था कि उन्हें लगा था कि भूत का किरदार तो आसानी से निभाया जा सकता है, लेकिन बाद में पता चला कि इसमें काफी कुछ छिपा होना चाहिए।
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