Teachings of the Buddha
गौतम बुद्ध से ऐतिहासिक प्रसंग है। एक नदी के किनारे बुद्ध और उनके शिष्य ठहरे हुए थे। एक दिन उस नदी के किनारे चार लोग नाव से उतरे। वे चारों ओर नाव से नदी पार करके वहां पहुंचे।
चारों लोग वस्त्रवे से विद्वान दिख रहे थे। नाव से उतरकर चारों ओर से चर्चा की गई कि इस नाव की मदद से हम नदी पार करने आए हैं। इस नाव को हम यहां कैसे छोड़ सकते हैं?
एक शख्स ने कहा कि जो हमारा काम आया है, हमें भी उसका काम दिखाना चाहिए, यही नीति है। इसलिए अच्छा है कि हम नाव पर घाट पर आ गए हैं तो अब हमें नाव को धन्यवाद देने के लिए इसे उठाना चाहिए। इस बात से चारों लोग सहमत हो गए।
उन चारों ओर नाव को सिर पर ले जाया गया और वहां से आगे बढ़ने लगे। काफी लोग उन्हें देख रहे थे, सभी चर्चा कर रहे थे कि ये लोग या तो बहुत बुद्धिमान हैं या बिल्कुल मूर्ख हैं। किसी ने इन चारों से नाव को उठाने की वजह पूछी।
इन चारों लोगों ने कहा कि इस तरह हम नाव के प्रति अपना पार्टनरशिप कर रहे हैं। इस नाव ने हमें नदी पार खोजा है, अब हम इसे सिर पर रख रहे हैं। पहले हम इसकी सवारी बने थे, अब ये हमारी सवारी बनी है। वैयक्तिक बातचीत करना अच्छी बात है।
इस संपूर्ण घटना को बुद्ध और उनके शिष्य भी बहुत ध्यान से देख रहे थे। शिष्यों ने बुद्ध से कहा कि तथागत इस घटना के बारे में आप क्या कहना चाहते हैं?
गौतम बुद्ध की सीख
बुद्ध ने कहा कि ये लोग जो कुछ कर रहे हैं, ये तो आपकी सोच है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि ये घटना हमें एक सीख दे रही है।
लोग अपने-अपने नी के मोह में इस तरह फंस जाते हैं कि वे अपना लक्ष्य ही भूल जाते हैं। नाव तो एक साधन है, एक साधन जिसे आप कहीं भी रखते हैं, वह आपको अपनी मंजिल की ओर ले जाता है, लेकिन आप साधन को स्थापित करते हैं तो मंजिल तक नहीं पहुंच पाते।
नी के मोह में फंस गए तो कभी भी लक्ष्य पूरा नहीं हो जाएगा। इनका मोह लक्ष्य की ओर बढ़ने में ही समझदारी है। हमारे आस-पास जो भी सुख-सुविधा की चीजें हैं, उनका उपयोग करते हैं, लेकिन नाजुक मोह न रखें।