Skanda Shashthi of Kartik month today
आज (मंगल, 22 अक्टूबर) कार्तिकवार मास के शुक्ल कृष्ण पक्ष की षष्ठी है। इसे स्कंद षष्ठी कहा जाता है। कार्तिक मास में आने वाली इस तिथि का महत्व काफी अधिक है, क्योंकि कार्तिक मास में आने वाली तिथि कार्तिकेय स्वामी के नाम के साथ ही पढ़ी जाती है और षष्ठी तिथि पर ही उनका अवतार हुआ था। षष्ठी कार्तिकेय स्वामी की जन्मतिथि से हर महीने की षष्ठी तिथि पर भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है।
मज़बूरी के ज्योतिष पंचाचार्य. मनीष शर्मा के अनुसार स्कंद षष्ठी पर भगवान कार्तिकेय, शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए। पूजा की शुरुआत प्रथम पूज्य गणेश जी का ध्यान के साथ करें। पूजा में भगवान का जल, दूध और फिर जल से अभिषेक करें। वस्त्र, हार-फूल से धारण करें। मिठाई का भोग और धूप-दीप की आरती करें। जानिए कार्तिकेय स्वामी से जुड़े खास प्रसंग…
कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध किया था
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम के एक असुर ने तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था। ब्रह्मा जी तारकासुर के सामने प्रकट हुए और उन्होंने उन्हें दुलार के लिए कहा। तारकासुर ने ब्रह्मा जी से कुछ ऐसी शोभा मांगी थी, जिससे वह अमर हो जाए।
उस समय देवी सती के वियोग में शिव जी का ध्यान किया गया था। किसी भी देवी-देवता का ध्यान भंग करना संभव नहीं था। तारकासुर ने सोचा कि अब शिव जी ध्यान में ही रहेंगे, दूसरा विवाह नहीं करेंगे। इसलिए तारकासुर ने ब्रह्मा जी से वर मांगा कि उनके वध शिव पुत्र के हाथ ही हों। ब्रह्मा जी ने तारकासुर को ये वर दिया।
मूर्तिपूजक तारकासुर के बहुत सारे पात्र हो गये थे। सभी देवता अपना वध नहीं कर पा रहे थे। तारकासुर ने धरती, स्वर्ग और पाताल, तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था। सभी देवता दुखी विष्णु जी के पास।
विष्णु जी ने तारकासुर को मारने की योजना बनाई ताकि शिव जी का दूसरा विवाह हो सके। इसके बाद शिव जी का ध्यान भंग करने के लिए कामदेव को कहा गया।
कामदेव ने अपने काम बाणों से शिव जी का ध्यान तोड़ दिया था। उस समय हिमालयराज की पुत्री पार्वती शिव जी को वर रूप में पाने के लिए टैप कर रही थीं। देवी के तप से शिव जी प्रसन्न हो गए और बाद में शिव-पार्वती का विवाह हो गया। विवाह के बाद शिव जी के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय का पालन शिव-पार्वती से दूर करने के लिए किया गया था। इसलिए वैद्यकीय नाम कार्तिकेय।
जब कार्तिकेय बड़े हुए तो शिव-पार्वती ने कार्तिकेय को अपने पास बुला लिया। कार्तिकेय के बारे में देवताओं पर आश्चर्य हुआ तो सभी शिव-पार्वती के पास। देवताओं ने कहा कि आप कार्तिकेय को हमारे साथ भेजें, क्योंकि आपके हाथों में ही तारकासुर का वध होगा।
देवताओं और त्रिलोकों की भलाई के लिए शिव जी ने कार्तिकेय स्वामी को देवताओं का सेनापति भेजा। बाद में कार्तिकेय स्वामी और तारकासुर का युद्ध हुआ। युद्ध में कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया। जब ये बात शिव जी को आश्चर्यजनक लगी तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई।
जिस समय कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था, तब हिन्दी पंचांग का आठवां महीना ही चल रहा था। अपने बेटे की सफलता से खुश होकर शिव जी ने इस महीने का नाम कार्तिक रख दिया।
शिव-पार्वती नाराज हो गए थे कार्तिकेय स्वामी
एक दिन शिव जी और पार्वती जी के पुत्रों कार्तिकेय और गणेश के विवाह के बारे में विचार किया गया। इस विचार के बाद शिव-पार्वती ने दोनों पुत्रों से कहा कि जो कलाकार रचनात्मकता की प्रशंसा करके पहले आता है, उसकी शादी पहले कराई जाएगी।
कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठ कर दुनिया की टिप्पणियों के लिए उड़ गए। गणेश जी का वाहन चूहा है, वह इतनी तेज नहीं थी। गणेश जी ने तुरंत ही अपने माता-पिता की वंदना कर ली और कहा कि मेरे लिए मेरे माता-पिता ही पूरे संसार हैं। इस बात से दिलचस्प है शिव-पार्वती ने गणेश जी से विवाह कराया।
कुछ समय बाद कार्तिकेय स्वामी संसार की ओर से जब शेयर किया गया तो उन्होंने देखा कि गणेश का विवाह हो गया है। उनकी पूरी बात सामने आई तो वे शिव-पार्वती नाराज हो गए और क्रौंच पर्वत पर चले गए।
आज क्रौंच पर्वत दक्षिण भारत के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। इसे श्रीपर्वत भी कहा जाता है। यहां मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है।
शिव-पार्वती ने कार्तिकेय की बहुत कोशिश की, लेकिन कार्तिकेय माने नहीं। तब शिव-पार्वती ने तय किया कि अब से हर वनस्पति पर शिव जी और पूर्णिमा पर पार्वती जी कार्तिकेय से मिलकर क्रोंच पर्वत पर जाएंगी। आज यहां मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है। मल्लिका यानी पार्वती और अर्जुन यानी शिव जी। शिव जी और पार्वती जी दोनों की ज्योतियां मंदिर में स्थित हैं।