3 घंटे पहले
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भाद्रपद की नक्षत्र की तिथि से लेकर पंचांग भेद हैं। तारीख़ों की घट-बढ़ की वजह से 2 और 3 सितंबर को कुशग्रांगी बनी रहेगी। यह तारीख 2 सितंबर को सुबह 4.40 बजे से शुरू होगी और अगले दिन 3 सितंबर को सुबह 6 बजे तक रहेगी।
मज़बूरी के ज्योतिष पंचाचार्य. मनीष शर्मा के अनुसार, हिन्दी पंचांग के एक महीने में दो पक्ष होते हैं, एक कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहते हैं। सिद्धांत यह है कि कृष्ण पक्ष की पन्द्रहवीं तिथि को एक पितर की वजह से अमावस का नाम मिला हुआ है। पितृ गृह-परिवार के मृत सदस्यों को कहा जाता है। जानिए कुशग्रांगी वनस्पति से जुड़ी परंपराएं…
ये है अमावसु नाम के पितर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार पुराने समय में एक कन्या ने पितरों को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। कन्या की तपस्या से अभिनीत पितर देव ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। उस दिन कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि ही थी।
पितरों में एक अमावसु नाम के पितर भी थे, वे दिखने में बहुत सुन्दर थे। जब कन्या ने अमावसु को देखा तो वह मोहित हो गई और उसने अपने श्रृंगार में अमावसु को पति के रूप में मांग लिया।
अमावसु ने उस कन्या से विवाह करने से मना कर दिया। कन्या ने उन्हें शादी की बहुत कोशिश की, लेकिन अमावसु नहीं माने और उस कन्या की शादी नहीं हो सकी।
अमावसु के संयम से अन्य सभी पितरों ने बहुत प्रसन्नता व्यक्त की और उन्होंने अमावसु को आशीर्वाद दिया कि अब से कृष्ण पक्ष की पांचवीं तिथि अमावसु के नाम से ही जानी जाएगी। इस कथा की वजह से हर महीने के कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र से संबंधित ज्योतिष शास्त्र
चंद्रा की सेल कलाएं बताई गई हैं, इनमें से सातवीं कला का नाम अमा है और ये कला कलाकृतियां तारीख से संबंधित हैं। इस तिथि पर सूर्य और चन्द्र एक साथ एक ही राशि में स्थित होते हैं। चन्द्र की इस कला को महाकला कहा गया है। इसमें चंद्रा की सभी सेल कलाओं की शक्तियां मौजूद हैं। इस कला का न तो क्षय होता है और न ही इसका उदय होता है।
कुशग्रैनी इलेक्ट्रॉनिक्स पर करें ये शुभ काम
दुर्भाग्य तिथि के स्वामी पितर देव हैं। इसलिए इस तिथि पर पितरों को पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म, धूप-ध्यान और दान-पुण्य करना चाहिए। पिंडदान, तर्पण नदी किनारे जायेंगे तो बहुत शुभ रहेगा। घर में पितरों को याद करते हुए उनका धूप-ध्यान करना चाहिए।
किसी पवित्र नदी पर स्नान करने की परंपरा है। अगर नदी स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो घर पर ही पानी में गंगाजल स्नान कराएं।
सोमवार और योग के योग में लिंग का विशेष अभिषेक करें। शिवलिंग पर चंदन का लेप करें। बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़ों के फूल, शमी, दूर्वा, गुलाब से शिव जी का श्रृंगार करें। मिठाई का शोरूम। धूप-दीप आरती करें।