bhool bhulaiyaa director anees bazmee struggle story: स्पीकर भी ढोए, सब्र टूटा तो ‘स्वर्ग’ के पोस्टर पर लिखा नाम; भावुक हुए नो-एंट्री, वेलकम के डायरेक्टर

उनकी फिल्म वेलकम का एक डायलॉग है- रोड से स्ट्रीट स्टार बना। यह जटिल अपने आप की जिंदगी पर लागू होता है।

हम बात कर रहे हैं डायरेक्टर अनीस बज्मी की। एक मध्यम श्रेणी परिवार से आने वाले अनीस आज संस्था के शीर्ष स्थान पर हैं। हालाँकि यहाँ तक यात्रा तय करने के लिए ईस्टर्न ईस्टर्न भारी संघर्ष है।

अनीस संघर्ष के दिनों में फिल्म के सेट पर स्टार्स ढोलते थे। हालाँकि इनमें से एक इनर राइटिंग का खतरा था, जिसकी वजह से लेट-सबेर क्वींस फिल्मों को मौका मिला। अन्य कई फिल्मों की कहानियां लिखी गईं, जिनके लिए क्रेडिट भी नहीं मिला। 1990 के बाद आई फिल्म स्वर्ग के लिए 5-6 फिल्में पहली बार क्रेडिट मिलीं। सिर्फ 25 साल की उम्र में मैथ्यू स्वर्ग जैसी फिल्म की कहानी लिखी गई थी।

अनीस को वाइटर का बहुत शौक था, लेकिन इसमें उलटकर रहना नहीं चाहते थे। राज कपूर के अंडर एनाल्जेसिक डायरेक्शन की डेमोक्रेटियां सीखी थीं। 1995 में पहली बार मैसाचुसेट्स फिल्में डायरेक्ट करने की शुरुआत हुई। इसके बाद बेस्ट नो डेब्यू, वेलकम और रेडी समेत कई सुपरहिट फिल्मों का डायरेक्शन किया गया।

संघर्ष से लेकर सफलता की कहानी, खुद अनीस की जंज़ी..

पिता के साथ मुशायरों में जाते थे, वहां पान, बीड़ी और अमिताभ बच्चन का काम करते थे

अनीस कहते हैं, ‘ऊपर वाला संघर्ष भी वही देता है, जो वो उतारता है। संघर्ष को लेकर रोना-धोना नहीं होना चाहिए। मेरे वालिद यानि कि एक शायर थे। वे मेरी गजलें और नज्में लिखते थे। वहां से मुझे उर्दू की समझ हो गई। आठवीं और नौवीं तक आते-आते मैं यादगारों के साथ मुशायरों में जाने लगा। वहाँ और भी शायर आये। मैं उनके लिए पान, बीड़ी और सितार फिल्म था।’

छोटे भाई की बात करने गए थे, उदाहरण मिल गया काम

अनीस ने आगे कहा, ‘आप भले ही मुझे एक डायरेक्टर या राइटर के तौर पर जानते हों, लेकिन मैं करियर के शुरुआती एक्टर्स में से एक था। दरअसल, छोटे भाई से बात करने का मौका मिला। सामने से कहा गया है कि हिंदू भाई तो छोटा है, तुम काम करोगे तो बताओ? खैर, मुझे डॉक्टरों की जरूरत थी, इसलिए मैंने हां बोल दिया।’

पैसों की ज़रूरत थी, इसलिए छोटे-मोटे काम करते थे

एक्टिंग में हाथ से बने कपड़े बनाने के बाद अनीस को लगा कि वे इसके लिए नहीं हैं। उन्होंने फिर आर्ट, एडिटिंग और साउंड डिपार्टमेंट में भी काम किया। इस तरह डायरेक्शन और राइटिंग में काम करने से पहले छोटे-मोटे कई काम किए। उस वक्त पैशन फॉलो करने से अधिकतम क्वेश्चन की जरूरत थी।

हर साल किराया बढ़ा था, इससे बचने के लिए 30 से ज्यादा घर बदले

संघर्ष के दिनों में अनीस ने 30 से अधिक घर बदले। वे एक घर में 11 महीने से ज्यादा नहीं रुकते थे। हर एक साल पर किराया बढ़ता गया। अनीस के पास तीन पैसे नहीं होते थे। अनीस ने सबसे पहले मुंबई के मीरा रोड पर एक कमरा खरीदा था।

राज कपूर से मिले, वहां से स्टार्स स्टाल लगे

इंडस्ट्री में छोटे-मोटे काम करने के बाद अनीस बाज़मी एक राइटर से मिले। उस राइटर ने उन्हें राज कपूर से मिलवाया। अब यहां से अनीस बज़मी के स्टार्स स्टॉल लगें। उन्होंने कहा, ‘राज साहब के अंडर में मैंने डायरेक्शन की डायरेक्शन सीखीं।’ उनकी फिल्म प्रेम रोग (1982) में मैं उनका नाम था। इसके बाद मैं अलग-अलग निदेशालयों के साथ काम करने लगा। कुल 15 डायरेक्टर्स के साथ मिलकर मैंने सुपरमार्केट में काम किया था।’

कहानियाँ उत्पन्न थीं, परन्तु श्रेय नहीं था

कुछ वृत्तचित्र निर्देशन निर्देशन पर काम करने के बाद अनीस बजमी ने फिल्मों की कहानियां लिखना शुरू कर दिया। गौर करने वाली बात यह है कि उन्होंने कई फिल्मों के लिए घोस्ट राइटिंग भी की। मतलब किसी की लिखी कहानी, लेकिन नाम और का गया।

इस बारे में अनीस कहते हैं, ‘मैं उन फिल्मों का नाम नहीं लूंगा। ये बात सच है कि मैंने बहुत सी साड़ी फिल्मों के लिए घोस्ट राइटिंग की बात की है। मुझे वह काम के लिए पैसे मिले थे। हालांकि 6-7 फिल्मों के लिए एक वक्ता के बाद ऐसा भी आया कि मेरा सब्र का टूट गया।’

स्वर्ग के पोस्टरों पर अपना नाम लिखा, टेलीकॉम कटर वाले इलेक्ट्रॉनिक्स से बने सामान बात है 1990 की. अनीस बज्मी ने राजेश खन्ना और गोविंदा स्टारर फिल्म स्वर्ग की स्क्रिप्ट वॉयस स्क्रीनप्ले लिखी। फिल्म रिलीज हुई ही हिट हो गई। अनीस को पहली बार पता चला कि उनका नाम भी बताया गया है। उन्होंने घूम-घूम कर फिल्म के पोस्ट पर अपना नाम लिखा दिया। ऐसा ही एक मसाला में सिद्धांत-जावेद किया करते थे। अनीस फिल्म का टेलीकॉम कटर वाले सुपरमार्केट के घर रात के 3 बजे पहुंचे थे। अनीस ने सोलो से लड़ाई भी कर ली, क्योंकि टेलीकॉम में उनका नाम नहीं डाला गया था।

गोविंदा, डेविड और अनीस ने मिलकर हिट फिल्मों की लाइन बनाई अनीस काफी पुराने समय तक राइटिंग करते रहे। एक वक्ता पर उनके, गोविंदा और डेविड डोर की टिकरी ने एक से सहन एक फिल्म का आकलन किया। शोला और शबनम, ओक्स और राजा बाबू जैसी फिल्में इसके उदाहरण हैं। काफी पुराने तक राइटिंग करने के बाद अनीस डायरेक्शन में आ गए। उनका असली लक्ष्य डायरेक्शन करना ही था, राइटिंग तो बस एक जरिया थी।

अजय देवगन को चॉकलेट चॉकलेट वाले पहले स्पेशलिस्ट थे अनीस बज्मी आख़िरकार 1995 में वेल्श ने अपनी पहली फ़िल्म हलचल डायरेक्ट की। यह फिल्म बिल्कुल खास नहीं रही। उनकी दूसरी फिल्म थी अजय देवगन और काजोल स्टार प्यार तो होना ही था। यह फिल्म काफी हिट हुई। इसके बाद अनीस ने अजय देवगन के साथ ही फिल्म बनाई। इस फिल्म में अजय देवगन ग्रे शेड में देखी गईं। अनीस बज्मी ही वो प्रॉक्टर थे, शॉ ने पहली बार अजय देवगन को कोरियोग्राफर रोल में दिखाया।

किसी भी शुरूआत के बाद एक सफल संचालक की स्थापना नहीं की गई अब साल आया 2005 का। अनीस बज्मी ने सलमान खान, अनिल कपूर और फरदीन खान को लेकर कोई फिल्म नहीं बनाई। यह उस साल की सबसे बड़ी हिट रही। इस फिल्म में अनीस ने एक बड़े और अस्थायी विभाग के तौर पर इंडस्ट्री में स्थापित किया।

नो एंट्री की सफलता ने वोट को गजब का भरोसा दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद 2007 में वेलकम, 2008 में सिंह इज किंग और 2011 में रेडी जैस मूवीज रिलीज हुई, प्रोटोकोल सक्सेस ने अनीस को कॉमेडी फिल्मों का बादशाह बना दिया।

रात-भर की कहानियाँ कहानियाँ थीं, माँ चाय लेकर खड़ी रहती थीं अनीस बाज़मी अपनी मां और पिता दोनों से काफी प्यारे थे। वे कहते हैं, ‘मैं रात-रात भर स्टोरीज लिखता था। स्टोरीज़ वॉइस के दौरान जब भी चाय पीने का मन हुआ, तो मैं हर वक्त केटली के लिए रुका हुआ था। अब नींद वो रात के एक बजे हो या दो बजे, उन्हें बिल्कुल फर्क नहीं पड़ा।

अन्यत्र एक उदाहरण था, कारण से मुझे लिखना आया। उन्होंने अगर कम उम्र में मुझे भाषा की तालीम नहीं दी तो आज आप मेरा इंटरव्यू नहीं ले रहे होंगे।’

इसमें कहा गया है कि अनीस बज्मी भावुक हो गए और कैमरे के सामने रोने लगे..

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