Beliefs Related to Ancestors: कुशा घास से बनी अंगूठी रिंग फिंगर में पहनकर करते हैं पूजा-पाठ और पितरों से जुड़े कर्म, जानिए ऐसा क्यों?

Beliefs related to ancestors: अभी पितृ पक्ष चल रहा है और पितरों का ये महापर्व 2 अक्टूबर तक जारी है। पितृ पक्ष में प्रतिदिन पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए। धूप-ध्यान करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाए तो श्राद्ध कर्म में जल्दी सफलता मिल सकती है।

Beliefs related to ancestors

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मज़बूरी के ज्योतिष पंचाचार्य. मनीष शर्मा के अनुसार, पितरों के लिए दोपहर 12 बजे के करीब ही श्राद्ध करना चाहिए, क्योंकि यही समय पितरों के लिए शुभ माना गया है। श्राद्ध करने के लिए गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से स्मोक आउटलुक बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़-घी बना लें।

इस दौरान घर-परिवार के पितरों का ध्यान रखना चाहिए। दाहिना हाथ की अनामिका या रिंग फिंग में कुशा घास से शेष अंगूठी का बंधन होना चाहिए। पथरी में जल लेकर अचार की ओर से जल चढ़ाना चाहिए। पितरों के लिए धूप-ध्यान करने की ये सरल विधि है।

कुशा घास से संबंधित धार्मिक सिद्धांत

धर्म-कर्म करते समय कुश के आसन पर बैठकर पूजा करने की परंपरा है। इसमें बताया गया है कि पूजा-पाठ करते समय हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और अगर हम पूजा करते हैं तो वह ऊर्जा ऊर्जा जमीन में प्रवेश कर जाती है। पूजा के समय कुश के आसन पर बैठेंगे तो पूजा-पाठ की वजह से हमारे शरीर में अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर में ही रहेगी, जमीन में प्रवेश नहीं।

अब जानिए पितरों के श्राद्ध करते समय कुशा की अंगूठी क्यों बनाई जाती है?

पूजा-पाठ और पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते समय कुश की अंगूठी अनामिका की उंगलियों में अंकित होती है। वास्तव में, पूजा और श्राद्ध करते समय हमारे हाथ की जमीन से स्पर्श नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि जमीन पर हाथ का स्पर्श होगा तो पूजा-पाठ की वजह से हमारे शरीर में प्रचुर ऊर्जा ऊर्जा जमीन में चली जाएगी।

कुशा घास की अंगूठी हमारे हाथ और जमीन के बीच रहती है। यदि भूल से हमारे हाथ की जमीन की ओर जाता है तो कुशा घास पहले जमीन पर लग जाती है और हमारे हाथ की जमीन की ओर से जुड़ जाती है, जिससे धर्म-कर्म से अधिक सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर से जमीन में जाने से बच जाती है। इसलिए कुशा की अंगूठी दांत में टुकड़े होती है।

कुशा घास से संबंधित सिद्धांत

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने कुछ देर के लिए कुशा घास पर कलश रख दिया, कुशा घास पर अमृत कलश रखने से कुशा पवित्र हो गई। इसकी पवित्रता की वजह से ही कुशा को पूजा-पाठ में इस्तेमाल किया जाता है। इसे पवित्र भी कहा जाता है।


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