भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में शिव परिवार की पूजा का शुभ योग रहता है। भादौ शुक्ल तृतीया पर हरतालिका तीज (6 सितंबर) का व्रत रखा जाता है। इस व्रत में देवी पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। इसके अगले दिन से गणेश उत्सव (7 से 17 सितंबर तक) शुरू हो जाता है। इन दिनों में देवी पार्वती, गणेश जी के साथ ही शिव जी और कार्तिकेय स्वामी की भी पूजा करनी चाहिए।
मज़बूरी के ज्योतिष पंचाचार्य. मनीष शर्मा के अनुसार, शिव परिवार की पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। जीवन के अंतिम क्षणों को दूर करने के लिए शिव-पार्वती का अभिषेक करना चाहिए। बुद्धि से संबंधित सामग्री में सफल होना चाहते हैं तो शिव-पार्वती के साथ ही गणेश जी का भी अभिषेक करना चाहिए। गणेश जी को बुद्धि का देवता माना जाता है और उनके भक्तों की बुद्धि प्रखर होती है।
सौभाग्य वृद्धि वाला व्रत है हरतालिका तीज (हरतालिका तीज)
तीज तिथि की स्वामी देवी पार्वती ही मानी जाती हैं। इस व्रत से जुड़े कई सिद्धांत हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध अवतार देवी पार्वती से जुड़े हैं। मान्यता है कि पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए यह व्रत रखा था। जो महिलाएं हरतालिका तीज व्रत करती हैं, उन्हें देवी पार्वती और शिव जी की कृपा से सौभाग्य प्राप्त होता है। इस व्रत से शुभ प्रभाव से जीवन जीवन सुख-शांति और प्रेम बना रहता है, जीवन साथी को लंबी उम्र, अच्छी सेहत और भाग्य का साथ मिलता है। जो कन्याएं विवाह के लिए मनोरंजन वर पाना चाहती हैं, वे भी हरतालिका व्रत करती हैं।
हरतालिका तीज (हरतालिका तीज) पर दान-पुण्य करना न भूलें
तीज पर व्रत करने के साथ ही दान-पुण्य भी जरूर करना चाहिए। विदेशी सुहागिन महिलाएं सुहाग का सामान जैसे चूड़ी, माला, कुमकुम, बिंदिया, आभूषण आदि वस्तुएं दान कर सकती हैं। महिलाओं को फलाहार भोजन की सलाह। छोटी कन्याओं की पूजा करें और पढ़ाई से जुड़ी चीजें दान करें।
7 से 17 सितंबर तक गणेश जी की शिव-पार्वती की पूजा करें
7 तारीख से गणेश उत्सव शुरू हो रहा है। इस दिन घर में गणेश जी की माता की प्रतिमा स्थापित करें। रोज सुबह गणेश जी के साथ ही शिव-पार्वती और कार्तिकेय स्वामी की भी पूजा करें। सिद्ध है कि गणेश उत्सव के दिनों में आयोजित पूजा से अक्षय पुण्य मिलता है। अक्षय अर्थात ऐसा पवित्र जिसका शुभ प्रभाव जीवन भर बना रहता है। आजकल ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ और अष्टविनायक तीर्थों में दर्शन-पूजन भी करना चाहिए। अगर इन पिरामिडों में भी दर्शन नहीं कर पा रहे हैं तो अपने शहर के पौराणिक मंदिरों में दर्शन-पूजन कर सकते हैं।