Actress Anjali Patil
‘रोज़ सुबह उठती हूँ, तब मुझे लगता है कि आज एक अलग परेशानी है। ‘संघर्ष ख़त्म हुआ ही नहीं’ ये कहा है- नेशनल स्टार विनिंग फिल्म देलेन एक्ट्रेस अंजलि पाटिल (Anjali Patil) का।
अंजलि पाटिल (Anjali Patil) ने बॉलीवुड में ‘डेल्ही इन ए डे’, ‘चक्रव्यूह’, ‘न्यूटन’, ‘श्री’, ‘मिर्ज्या’, ‘मल्हार’ आदि फिल्मों से लेकर तमिल, क्षेत्रीय, मराठी आदि भाषा की फिल्में भी की हैं।
मनोरंजन जगत से दूर-दूर तक नाता ना होने के कारण अंजलि यहां के सिस्टम को समझ ना सकीं और अवसाद का शिकार भी बनी रहीं। इतना ही नहीं, वे यहां रंग-रूप का भेद भी झेलते हैं।
अभिनय करने की इच्छा स्पष्ट की, तब सिद्धांत बहुत रूठ गए
मैं महाराष्ट्र स्थित नासिक में मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में पैदा हुआ। देखें पाली-बढ़ी। फैमिली में कभी किसी ने एक्टर्स बनने के बारे में नहीं सोचा था। इस प्रोफेशन रिस्पेक्टफुल को भी नहीं माना जाता था। मैंने अभिनय करने की इच्छा स्पष्ट की, तब अमूर्त अत्यंत रूठ गए। वे इतने नाराज हो गए कि मैं ड्रामा स्कूल चला गया, तब साल भर मेरी बात नहीं हुई। खैर, मैंने किसी तरह पापा को कंविंस किया।
चाय और बेडरूम की गुजराती थी
11वीं-12वीं के बाद पता चला कि एक ऐसा भी स्कूल है, जहां किताबी पढ़ाई नहीं, नाटकीय अभिनय, नृत्य और गाना गा सकते हैं। यहां ग्रेजुएशन भी ड्रॉ इंजीनियर्स में है। पुणे यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए चोरी-छिपे की तलाश की गई। उस वक्त 16 साल की रहूंगी। पुणे युनिवर्सिटी में बेचलडी शौहर आलेकर से मिली, तब उन्होंने कहा कि रूटीन मोबाइल ऑफर आ जाए। दिया और सिलेक्ट हो गया। यह तीन दिन की यात्रा थी। यह तीन दिन मेरी जिंदगी का सबसे कठिन दिन था।
तब पांच रुपये में चाय और बेड-बटर आता था, यह तलाश दिन गुजराती थी। पूरे तीन दिन ऐसे ही रहा। वापस गियान घर में बताया गया कि मेरा सिलेक्शन हो गया है। यहां से आर्टिस्टिक की पढ़ाई शुरू हुई। तीन साल का कोर्स। यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा इंपोर्टेंट साल है।
संस्थान के तौर पर-तरीके को समझ नहीं पाया, अवसाद में चला गया
मैं इंडस्ट्री में आई, तब पांच-छह साल की इंडस्ट्री को समझने में ही लग गई। थैंकफुली, पहली मेरी फिल्म ‘डेल्ही इन ए डे’ आई, तब यह फिल्म फेस्टिवल में बहुत चली। मैंने अर्जुन द्रोणाचार्य, अभय देवता के साथ ‘चक्रव्यूह’ की, यह बिल्कुल सही फिल्म थी।
‘चक्रव्यूह’ के बाद वाला समय मेरे लिए बहुत ही अकेला, अलग था, क्योंकि मैं इंडस्ट्री के तरीके-तरीके और जो लाइफ स्टाइल पोट्रे करता हूं, उसे समझ नहीं पा रही थी। शायद इससे भी मैं बहुत ज्यादा अवसाद में चला गया। उसी दौरान मेरी प्रोडक्शन फिल्म के लिए नेशनल नेशनल डिक्लेयर का निधन हो गया। उसी समय मुझे श्रीलंकाई फिल्म के लिए इफ्फी के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं की फिल्में भी मिलीं। लेकिन ये साड़ी की दुकानें एक तरफ थीं और बॉलीवुड में हीरोइन बनने की ट्रेनिंग एक तरफ थी, जो किसी ने नहीं दी थी।
इसके बाद कई साल तक अवसाद में चला गया, क्योंकि मैं कलाकार हूं और कला के लिए आया हूं। यह सब मेरी नहीं हो पा रही थी।
लोअर मी मिडिल क्लास गर्ल्स के रोल ही ऑफर होते थे
शुरुआती दिनों में एम्बेड और रोल पाना बड़ा मुश्किल था। अब पर्यटक लोग कहते हैं कि तुम खूबसूरत हो, मगर 8-10 साल पहले मेरा रंग इतना पसंद नहीं आता। मुझे गांव की लड़की, चॉल की लड़की, जनाब गर्ल या लो-मिडिल क्लास गर्ल्स के रोल ही ऑफर होते थे। उनसे भी मुझे बहुत दिक्कत हुई कि मेरा कलर डिसाइड चाहता था कि मैं अमीर दिख रहा हूं या नहीं। मुझे एक ही प्रकार के रोल के लिए बुलाया गया था, तब उन्हें उस समय लगता था। एक बिंदु के बाद मैंने रोबोट बंद कर दिया, क्योंकि नी को बहुत पर्सनली ले रही थी। ।।
खाने-पीने के पैसे नहीं होते थे
‘चक्रव्यूह’ के बाद भी बहुत समय से महान काम का इंतजार था, क्योंकि काम के नाम पर कुछ भी नहीं किया गया था। एक तरफ काम पैसे को मन रही थी और दूसरी तरफ भी नहीं थे। दोस्त से भी पैसे माँगती नहीं थी। कुछ समय तक खाने-पीने के लिए भी पैसे नहीं निकले। एक समय ऐसा था कि पैसे नहीं होते थे। उस दौरान मुझे खाने-पीने की बहुत परेशानी हुई। मुझे याद है कि उन दिनों एक-दो बजे के बीच कहानी थी ताकि वहां पर जाऊं तो कुछ खाने को मिल जाऊं। ये लोगों के जीवन में होता ही होगा. कलाकार भी हैं, उनमें से अधिकतर यह दिन देखते ही होंगे। मैं बहुत कुछ झेला हूं, जिया है।
मेरे साथ कॉम्प्रोमाइज करने की बातें गायब नहीं हुईं
समझौता करने की बात यह है कि आस-पास के लोग बहुत होते हैं, लेकिन लोगों ने मुझे उस तरह से कभी भी अप्रोच नहीं किया। नियति से ऐसी कोई घटना मेरे साथ घटती नहीं। लेकिन मुझे पता है कि मैंने शायद बहुत सारा काम किया है, क्योंकि सभी लोगों ने बिल्कुल मनोरंजन नहीं किया है।
पिछले 18 महीने से नॉन स्टॉप शूटिंग कर रही हूं
मैं पिछले 18 महीने से नॉन स्टॉप शूटिंग कर रही हूं, जो बहुत अच्छी बात है। अभी लखनऊ से फिल्म ‘जागृति’ की शूटिंग आई हूं। लॉयर का किरदार निभा रही हूं। इसके बाद सुदीप्तो सेन ने वेस्ट बंगाल पुरुलिया जाउंगी में फिल्म की शूटिंग की। शॉर्ट फिल्म ‘नाम’ का निर्माण और अभिनय भी इसमें शामिल है। यह कई साड़ी फेस्टिवल में नजर आ रही है। अभी एक मराठी शॉर्ट फिल्म ‘बेनी बेडर’ का टोकियो में वर्ल्ड प्रीमियर हुआ है।