‘अनुवाद शब्दों का होता है, ख्यालों का नहीं’: बुक लॉन्च इवेंट में गुलजार साहब बोले- भाषा चाहे जो हो, विषय का मर्म नहीं बदलना चाहिए

गुलजार साहब

‘अनुवाद शब्दों का होता है, विचारों का नहीं’ पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोले गुलज़ार साहब, भाषा कोई भी हो, विषय का सार नहीं बदलना चाहिए

मुंबई6 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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गुलजार साहब

ज्ञानपीठ से लेकर महाकाव्य सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार लेखक विजेता-शायर गुलजार का जीवन कई रंगों से भरा है। मौका था, किताब ‘धूप आने दो’ का अंग्रेजी संस्करण लॉन्च किया गया। गुलजार साहब ने इस समारोह में अपनी सहमति दर्ज कराई।

 

किताब ‘धूप आने दो’ एक तरह से उनकी आत्मकथा बन सकती है। इस किताब के पन्ने में उनके जीवन की कहानियाँ और कहानियाँ शामिल हैं। मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। प्रसिद्ध लेखक अंबरीश मिश्रा ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है।

मराठी पत्रिका के लिए फ़्लू थे गुलजार साहब, वहां लिखित अध्यायों की एक किताब संजोया गया

अंबरीश मिश्रा ने इस किताब के बारे में एक पुरानी बात बताई। उन्होंने कहा, ‘मराठी भाषा में त्योहारों के समय कई विशेष मंदी थीं। इसमें दीपावली की मस्जिद पर एक पत्रिका, सीज़नरंग शामिल है। इस पत्रिका के लिए गुलजार साहब ने 33 साल तक लिखा है। इसके लिए वे हर साल एक निबंध की स्थापना करते थे।

इसके अलावा वे और भी बहुत सारी निजी और सामाजिक घटनाओं के बारे में अपने विचार रखते थे। वे ऋतुरंग के संपादक के साथ उर्दू में बातचीत कर रहे थे। उनकी बातें का मराठी में अनुवाद। अब उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है, उसमें जिम्मेदारी दर्ज की गई है।

गुलजार साहब (दाएं) के दौरान बुक लॉन्च इवेंट
गुलजार साहब

गुलजार साहब (दाएं) के दौरान बुक लॉन्च इवेंट

अंबरीश ने यह भी कहा, ‘आज इस बुक लॉन्च को लेकर मैं काफी एक्साइटेड हूं।’ वैसे तो अंग्रेजी भाषा में मुझे आनंद का आनंद नहीं मिलता, लेकिन गुलजार साहब के साथ काम करके बहुत अच्छा लगा। उन्होंने एक-एक शब्दों को तौलकर इस किताब में रखा है।’

जो भाषा भी, मर्म नहीं बदला जाना चाहिए

गुलजार साहब ने कहा था कि अनुवाद सिर्फ शब्दों का होता है, योजनाओं का नहीं। लोग यह चीज़ समझने में भूल करते हैं। जहाँ कँगनी भाषा जो भी हो, मर्म नहीं बदलना चाहिए।

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बंटवारा जमीन का होता है, लोगों का नहीं
गुलजार साहब ने दोस्ती के वक्ता जो दंश झेला, इस किताब में उनका भी जिक्र है। उन्होंने कहा, ‘बंटवारे का जो दर्द है, वो मुझे झेला है।’ बँटवारा कभी नहीं होना चाहिए। हालाँकि एक बात मैं आपको बता दूं, बंटवारा हमेशा जमीन का होता है, लोगों का नहीं। आज के वक्त में इसकी बात न हो, वही अच्छी है।

गुलजार साहब ने कहा था कि इस किताब में उनसे जुड़ी हुई बहुत सारी साडी घटनाएं हैं, इसमें वे किसी को विशेष मान्यता नहीं दे सकते। यह किताब दिल से लिखी गई है।

इस किताब के अंदर कुछ दुर्लभ तस्वीरें भी हैं, जो गुलजार साहब की जीवन यात्रा पर निकले हैं। ऐसे कई वाकये हैं, जिन्होंने कहीं न कहीं गुलजार साहब के जीवन में एक मूल विद्यालय को बदल दिया है।

 

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